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रोसड़ा विधानसभा सीट से हर बार उठता है स्थानीय उम्मीदवार का मुद्दा,इस बार होने वाला चुनाव में भी यह मुद्दा है हावी

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मोहम्मद आलम

रोसड़ा विधानसभा जब से अस्तित्व में आया, यहां पर पानी, बिजली, सड़क समेत जनसुविधाओं की कमी हमेशा रही है।तमाम समस्याओं के बावजूद यहां इसका हल नहीं निकल सका। इस सीट का इतिहास रहा है कि यहां कई वर्षों से जब भी चुनाव के रिजल्ट आए हर बार कोई बाहरी ही चुनाव जीता है।शहरी क्षेत्र में सड़क, स्वास्थ्य और बिजली को लेकर कुछ विकास हुआ लेकिन ग्रामीण इलाके विकास से अछूते रहे।कामों की चर्चा सरकार की उम्मीद जगाते हैैं तो आकांक्षाएं विधायकों पर अंगुली उठाने में भी कोताही नहीं बरतती और विपक्ष को ताकत होने का दिलासा देती हैैं, लेकिन यह भी है कि सरकार की उम्मीदें धूमिल भी नहीं करतीं। कारण, ध्रुवीकरण और लोकल बनाम बाहरी के साथ यहां विकास और चेहरे भी मुद्दा हैैं।मोदी-नीतीश की जोड़ी से उम्मीद लगाए लोग विधायक को कोसने के बाद भी वोट देने की बात करते हैैं तो बेसहारा पशु, महंगाई और रोजगार के मुद्दे पर विपक्ष के साथ सुर मिलाने वाले भी हैैं।कहीं मुखर तो कहीं मौन मतदाता हर स्थिति पर निगाह गड़ाए हुए हैैं।रोसड़ा विधानसभा सीट से बाहरी बनाम स्थानीय का मुद्दा हमेशा हावी होता है।पार्टियों के राजनीतिक कार्यकर्ता और वोटर स्थानीय उम्मीदवार की मांग करते है।लेकिन अंतिम समय में प्रमुख राजनीतिक पार्टियां बाहरी उम्मीदवारों को टिकट दे देती है।चुनाव प्रचार के बाद बाहरी लाेग ही जीतकर विधानसभा पहुंचते हैं। स्थानीय बनाम बाहरी की मांग तो होती है।फिर रोसड़ा विधानसभा क्षेत्र के ही धुंरधंर राजनेता आपसी कलह में स्थानीय नेताओं को जीतने नहीं देते,परिणाम के दौरान बाहरी प्रत्याशी को विधानसभा पहुंचने का अवसर मिल जाता है।इस बार के होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव  में भी यह मुद्दा हावी है।अब देखना यह है स्थानीय राजनीतिज्ञ रोसड़ा विधानसभा के लाल को विजय का सिरमौर पहनाते है या आपसी कलह में फिर बाहरी के सिर जीत का ताज सजता है।

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